Special Report: सुप्रीम कोर्ट ने उठाया प्राइवेट अस्पतालों की जिम्मेदारी पर बड़ा सवाल

Special Report: सुप्रीम कोर्ट ने उठाया प्राइवेट अस्पतालों की जिम्मेदारी पर बड़ा सवाल

नरजिस हुसैन

पिछले कुछ महीनों में कोविड-19 के मरीजों को जिस तरह प्राइवेट अस्पताल भारी-भरकम बिल पकड़ा रहे हैं उसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसी हफ्ते केन्द्र से पूछा है कि वह बताए कि मुफ्त सरकारी जमीन या न के बराबर सरकार को पैसा देने के बाद बने प्राइवेट/चैरिटेबल अस्पताल क्या महामारी के वक्त नागरिकों का मुफ्त या कम पैसे में इलाज नहीं कर सकते। ये सवाल देश के उन सभी प्राइवेट अस्पतालों के लिए है जो कोरोना पॉजिटिव मरीजों के इलाज में लाखों का बिल बना रहे हैं।

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तीन जजों की बेंच ने यह भी कहा कि सरकार से मुफ्त में जमीन लेने वाले या कुछ और रियायतें लेने वाले अस्पताल संकट के इस दौर में भी मरीजों से दौगुना पैसा वसूलने से बाज आएंगे। बेंच ने केन्द्र सरकार से ऐेसे प्राइवेट और चैरिटेबल अस्पताल की शिनाख्त करने को भी कहा है जो इस वक्त कोविड मरीजों का मुफ्त या कम पैसों में इलाज कर सकें। एक याचिका के तहत हुई सुनवाई का सीधा असर दिल्ली समेत सभी राज्यों के उन लोगों पर पड़ेगा जो मंहगे इलाज या बीमा न होने की वजह से प्राइवेट अस्पतालों का रुख नहीं करते थे और या फिर जीवन की कमाई इलाज में ही गंवा देते थे।

हालांकि, ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हो रहा है इससे पहले भी 2007 में दिल्ली हाई कोर्ट ने राज्य के सभी प्राइवेट अस्पतालों को उनके सामाजिक दायित्वों को दरकिनार करने पर उनकी निंदा की थी। और ये सभी अस्पताल सरकार से काफी रियायतों का फायदा भी उठा रहे थे। देश में हमेशा से केन्द्र और राज्य सरकारें स्कूलों और अस्पतालों को प्राइम लोकेशन पर मुफ्त या कम पैसे में जमीन देती है ताकि वे संगठन आगे चलकर अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाएं लेकिन, हमेशा से देखा भी यह गया है कि मुसीबत के वक्त प्राइवेट सेक्टर खुद को सरकार से बिल्कुल काट लेता है और तब आम आदमी इंसाफ के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाता है।

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इलाज की कीमतों पर हर बार अपनी मनमानी करने वाले इन प्राइवेट अस्पतालों को  देर-सवेर अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। देश में पिछले कुछ सालों से स्वास्थ्य का ढांचा बीमा आधारित होता जा रहा है। जहां हर आदमी अपना या परिवार के और लोगों का स्वास्थ्य बीमा करवाना किसी ऑक्सीजन से कम नहीं समझता। लेकिन, यह बीमा गांवों और देहातों को छोड़िए तो शहरों में भी सभी लोग नहीं करवा पाते। तो क्या अब यह मान लेना सही है कि अमेरिका की तरह अब भारत में भी स्वास्थ्य सुविधाएं बीमा आधारित होगी। या इतने बड़े स्वास्थ्य सेक्टर में सरकार की अपना कोई भागीदारी नहीं है। सरकार का हालातों को देखते हुए भी अब से सरकार को अपनी नीतियों पर दोबारा गौर करने की बहुत जरूरत है। क्योंकि मौजूदा वक्त में अगर देश की जन स्वास्थ्य सेवाएं इतनी सक्षम नहीं है कि वे महामारी का बोझ अकेले उठा पाएं तो क्या उनकी मदद के लिए प्राइवेट अस्पतालों को आगे नहीं आना चाहिए।

इसके फौरन बाद ही दिल्ली में भी 82 आईसीयू बेड वाले सात प्राइवेट अस्पतालों के 74 बेड पर कोविड मरीज हैं। वहीं दिल्ली के छह सरकारी अस्पतालों के 348 बेड में से 111 पर कोविड के मरीज हैं। दिल्ली में 10 प्राइवेट और छह सरकारी अस्पताल कोरोना का इलाज कर रहे हैं। इसके अलावा राज्य सरकार ने 117 नर्सिग होम और प्राइवेट अस्पतालों को अपने यहां 20 प्रतिशत स्टाफ कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए रखने को कहा है। देर से ही सही लेकिन सरकार की इस पहल से सरकारी अस्पतालों और उसके स्टाफ का बोझ कुछ कम हुआ है। लोग अब इस सहूलत का फायदा उठाते हुए घरों के पास के प्राइवेट अस्पताल में जाना शुरू कर रहे हैं जहां करीब 90 फीसद आईसीयू बेड भर चुके हैं। पूरे राज्य में इस वक्त कुल 4,462 बेड पर कोरोना के मरीज हैं। इस तरह दिल्ली में जहां कोरोना पॉजिटिव के मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं सरकार के इस फैसले से लोगों में कुछ राहत और उम्मीद आई है।

हालांकि, दिल्ली के ठीक उलट गुजरात में कोविड का इलाज कर रहे प्राइवेट अस्पतालों ने हाई कोर्ट से गुहार की है कि अगर उन्हें अपने हिसाब से इलाज की कीमतें तय नहीं करने दी जाएगी तो सरकार मजबूरी में प्राइवेट अस्पतालों को बंद करने की तरफ धकेल रही है। 14 मई को गुजरात सरकार ने इन अस्पतालों को 50 प्रतिशत बेड कोविड-19 के मरीजों के लिए सुरक्षित रखने को कहा था जो सरकारी अस्पतालों से अलग हैं। 246 प्राइवेट अस्पताल और नर्सिंग होम्स वाले अहमदाबाद हॉसिपिटल्स एंड नर्सिग होम्स एसोसिएशन ने इसपर ऐतराज जताते हुए हाई कोर्ट से यह संख्या कम करके 30 फीसद तक करने को कहा था। इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को होनी है उसके बाद ही तस्वीर कुछ साफ होगी।

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बहरहाल, देश दुनिया में कोरोना का संकट चल ही रहा है और न जाने कब तक यूं ही चलता रहेगा। बात ये नहीं है कि इसमें सिर्फ लोग ही मर रहे हैं फ्रिक की बात यह है कि इसमें डॉक्टर, नर्सें और तमाम स्वास्थ्यकर्मी भी शामिल हैं जिनके बिना हम कोरोना को खत्म करने की सोच भी नहीं सकते। लेकिन, यहां यह बात जाननी भी जरूरी है कि इलाज चाहे सरकारी हो या प्राइवेट सबसे लिए खुला और आम आदमी की पहुंच में हो क्योंकि जब तक इस तरह का कोई सिस्टम हम नहीं बनाएंगे तब तक सरकारी अस्पताल और प्राइवेट अस्पताल के बीच छींटाकशी का मौजूदा दौर नहीं थमेगा।

 

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